जलवायु परिवर्तन एक विकट समस्या ।

आजकल जीवन लॉकडाउन और अनलॅाक की प्रक्रिया में उलझ-सा गया है। आप सब स्वस्थहोंऔरआपका परिवार स्वस्थ रहे, वर्तमान में सबसे बड़ी पूँजी यही है और मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप सब स्वस्थ रहें। बार-बार जब इन परिस्थितियों से हम सब गुजरते हैं तो मन यह सोचने पर मजबूर होता है किआखिर मानव-जाति ने ऐसी क्या गलतियाँ की जो प्रकृति ने हमारे सम्पूर्ण जीवन को जैसे गतिहीनकर दिया है।

जलवायु-परिवर्तन, जिसकी चर्चा लगातार वैश्विक मंच पर होतीरहती है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक मंच बनाकर भारत को अगुवा देश बना दिया है। समर्थ भारत जो दुनिया का नेतृत्व करने में सक्षम है। वास्तव में हम अनुभव करें तो हमारे जीवन-काल में ही औसत वर्षा में कमी आयी है। गर्मी बढ़ी तो कहीं सर्दी ज्यादा हुई, कोई अनुमान ही नहीं लगता। बड़े-बुजुर्ग जब बात करते हैं तो इस बात का दुख व्यक्त करते हैं कि सब गड़बड़ हो गया है। ऋतु चक्र अनियमित हो गया है, हमारे समय में इतनी गर्मी नहीं होती थी, पानी  चार महीने बरसता था वहीं जाड़़ा भी तीन महीने होता था, ये सब कहीं-न -कहीं हमारे लिए चिंता का विषय है, महात्मा गाँधी जी की जीवनी में उनकी माता पुतली बाई का जिक्र चार्तुरमास के व्रत में ही आता है और गाँधी जी कहते हैं, हम सब भाई-बहन बरसात के मौसम में बादलों के बीच में सूरज को देख कर माँको सूचना देते तभी वे भोजन करती थीं।

सूरज ना दिखे तो व्रत न टूटे, तात्पर्य बस इतना सा है कि बरसात के महीने भी निश्चित थे। गर्मी के दिनऔर ठंड के महीने भी,औसतन जलवायु उस काल तक ठीक ही रहती थी, वर्तमान में तो हम सब यही अनुभव करते हैं कभी तीव्र गर्मी,तो कभी अधिक बारिश, मैदानी इलाके में भी बर्फबारी हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं । औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा देते हुए निरन्तर मानकों को ताक पर रखकर बनते कारखानों में कार्बनडाई आक्साइड का अतिशय उत्सर्जन,जगंलों को काट कर बसते हुए शहरों से जलवायु में नकारात्मक परिवर्तन के जिम्मेदार हम सब हैं। जिम्मेदारी ले भर लेने से कोई काम नहीं बनने वाले,अब आगे बढ़ कर सोचना पड़ेगा। जो वनों का क्षेत्र  हमने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए काटा है,पर्यावरण-संरक्षण के लिए इस की सम्पूर्ति करनी पड़ेगी। इस धरती माँको उनके आभूषण से फिर सजाना होगा। वनाच्छादित क्षेत्रफल बढ़ाना होगा। वृक्षारोपण-अभियान सभी सरकारेंचलाती हैं।

एक दिन में वर्तमान सरकार ने तो 25 करोड़ पेड़ लगाने का रिकार्ड बना दिया । उन सब पौधो को बचाकर पेड़ बनाने का जिम्मा हम नागरिकों का है। प्लैनेट अर्थ जिसको हम धरती माता का दर्जा देते है उसकी जैव-विविधता की रक्षा करनी होगी। सर्वविदित है कि सृष्टि में दोहाथ-पैर वाला प्राणी अर्थातमनुष्य सबसे बुद्धिमान है। यदि हमारे सोचने और  काम करने की दिशा सकारात्मक होगी तो सृजन होगाऔर यदि नकारात्मक दिशोन्मुख हुए तो विनाश भी मानव जाति ही कर सकती है। हम सब सृजन के साक्षी बनें। संकल्पित होकर हम अपनी क्षमता के अनुरूप वृक्षों को लगाने और उनको संरक्षित करने में अपना योगदान दें। दैनिक जीवन मे छोटे -छोटे योगदानसे हम पर्यावरण को संरक्षित रखकर जलवायु सन्तुलन कायम रख सकते हैं।जैसे-प्लास्टिक का उपयोग नकरें। हम किसान है तो जैविक खेती की तरफ लौटें,कारखाना चलाते हैं तो न्यूनतम प्रदूषण के सभी मानकों को पूरा करने का प्रयास करें जिससे कम से कम प्रदूषण के कारक उत्पन्न हों ।

हमने अनजाने में गलती कर के इस सुन्दर धरती के वातावरण को दूषित किया है। आइये छोटे-छोटे प्रयास हम सब मिलकर करते हैं। इस धराको फिर सुन्दर बनाएं, मनुष्य के साथ ही पशु-पक्षियों को भी सुरक्षा प्रदान करें। पेडों की छाँव होगी, सुन्दर पुष्प होंगें,हमारी धरती माता हम सब से पुनः प्रसन्न होगी और जलवायु फिर परिवर्तित होगी। पुनः हम सब की इस धरती पर स्वच्छऔरसुंदर वातावरण होगा,ऋतु चक्र पुनःपूर्व की भाँति गतिमान होगा, भावी पीढ़ी आप सब का धन्यवाद करेगी, ये प्रयास हम सबका होगा ।

किसी ने उचित ही कहा है – स्वयं सजेंव सुंधरा सँवार दें।
वन्दे मातरम्


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