जनपद-कार्यालय,(हरदोई) पर जिला-अध्यक्ष श्री सौरभ मिश्र जी,जिला-संयोजक स्नातक चुनाव,श्री अजित सिंह बब्बन जी एवं जिला-कमेटी के पदाधिकारी गण से भेंट की।
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भारतीय जनता पार्टी जिला कार्यालय पर सदस्यता ग्रहण समारोह ।
जनपद बाराबंकी में,भारतीय जनता पार्टी जिला कार्यालय पर जिलाध्यक्ष मा.अवधेश श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में पूर्व माध्यमिक शिक्षा संघ शर्मा गुट की तेजतर्रार जिलाध्यक्ष नीता अवस्थी जी ने सैकड़ों शिक्षकों के साथ में मोदी जी और योगी जी के नीति से प्रभावित होकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
इस अवसर पर बाराबंकी के यशस्वी सांसद मा.उपेंद्र सिंह रावत जी,शिक्षक खंड लखनऊ प्रत्याशी मा.उमेश द्विवेदी जी, शिक्षक एमएलसी प्रत्याशी गोरखपुर मा.अजय सिंह जी, क्षेत्रीय मंत्री अवध क्षेत्र मा.अजीत प्रताप सिंह जी, जिला शिक्षक एमएलसी चुनाव संयोजक मा.अमित वर्मा जी समेत भाजपा के जिला पदाधिकारीगण व देवतुल्य कार्यकर्तागण उपस्थित रहे।
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मतदाताओं से पार्टी के पक्ष में मतदान करने हेतु प्रेरित करने का आग्रह किया।
जनपद सीतापुर सेवता विधानसभा के विधायक माननीय श्री ज्ञान तिवारी जी और लहरपुर विधानसभा के विधायक माननीय श्री सुनील वर्मा जी को उनके विधानसभा क्षेत्रान्तर्गत स्नातक-मतदाता सूची सौंप कर तथा सभी मतदाताओं से संवाद कर पार्टी के पक्ष में मतदान करने हेतु प्रेरित करने का आग्रह किया,इस अवसर पर माननीय क्षेत्रीय महामंत्री अवध क्षेत्र व लखनऊ खण्ड स्नातक चुनाव संयोजक श्रीमान दिनेश तिवारी जी का सानिध्य रहा।

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कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर उनका कुशल क्षेम जाना ।
हरदोई के माधोगढ़ एवं बिलग्राम विधानसभा के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं से भेंट कर उनका कुशल क्षेम जाना और कोरोना के बढ़ते संक्रमण से बचने और सावधानी बरतने का निवेदन किया।

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श्रीराम सब के हैं, वह भारत के कण-कण में व्याप्त हैं ।
भगवान राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, हनुमान के राम, जामवंत के राम, ऋषि विश्वामित्र के राम, सीता के राम, दशरथ नंदन राम, माता शबरी के राम, केवट के राम, कौशल्या के पुत्र राम, कैकेई के दुलारे राम, अयोध्या की जनता के श्रीराम। एक व्यक्ति इतने सारे लोगों का कैसे हो सकता है ? श्रीराम में कामना नहीं, लोभ नहीं, क्रोध नहीं, ऐसा पुरुष कैसे संभव हो सकता है ? व्यसन उन्हें लालायति क्यों नहीं करते ? कंचन और कामिनी का मोह उन्हें क्यों नहीं सताता ? ऐसे ढेरों प्रश्न मन में लेकर जब रामायण का अध्ययन शुरू करेंगे तो एक अलग व्यक्तित्व की छवि उभर कर सामने आएगी। राम का त्याग है, तो लक्ष्मण का भी त्याग है। माता सीता के त्याग और चरित्र की तो तुलना ही नहीं की जा सकती।

राम का चरित्र अनुशासन सिखाता है। यह भी सिखाता है कि प्रतिकूल परिस्थति में भी व्यक्ति को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए और शांत चित से समस्या का समाधान निकालने का मार्ग तलाशना चाहिए। गुरु के प्रति एक शिष्य का भाव कैसा होना चाहिए, जिसके पास शक्ति और सामर्थ्य है उसका व्यवहार समाज के प्रति कैसा होना चाहिए, साधन संपन्न होने के बावजूद उससे विरत रहना और सेवा करते समय कैसा भाव होना चाहिए, यह सब कुछ उनके व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है। श्रीराम गुरु-शिष्य परंपरा के अद्भुत उदाहरण हैं। श्रीराम बालक थे, फिर भी ऋषि विश्वामित्र के आदेश पर उन्होंने ऋषि-मुनियों को भयहीन किया। वन-वन घूम कर उन्होंने आश्रमों में ऋषि-मुनियों के यज्ञ और आश्रमों में अध्ययन-अध्यापन में व्यवधान डालने वाले राक्षसों का संहार किया। इस तरह, श्रीराम अपने कार्य और व्यवहार से लोगों के हृदय में उतरते चले गए और लोगों ने सदा के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम को अपने हृदय में बसा लिया। इसलिए श्रीराम सब के हैं। वह भारत के कण-कण में व्याप्त हैं।

शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु के आदेश पर स्वयंवर में शामिल होते हैं, जहां बड़े-बड़े महारथियों की मौजूदगी भी नवयुवक राम को विचलित नहीं करती। इस प्रकार, असंभव समझे जाने वाले कार्य को संपादित कर श्रीराम माता सीता के साथ विवाह करते हैं और परिवार तथा राज्य की खुशी का कारण बनते हैं। राम एक आज्ञाकारी पुत्र भी थे, जो अपने पिता का वचन निभाने के लिए राजपाट, सुख और आराम सबकुछ छोड़कर संन्यासियों की तरह 14 वर्षों तक संघर्ष किया। नव विवाहिता पत्नी और भाई के साथ जंगल-जंगल, पर्वत-पर्वत भटकते रहे, लेकिन जीवन में आने वाली समस्याओं और कठिनाइयों से न तो विचलित हुए और न ही वनवास जैसे आदेश के लिए पिता पर कभी क्रोध ही किया। इस तरह राम का जीवनचरित एक आदर्श स्थापित करता है, साथ ही यह सिखाता है कि पिता के वचन या आदेश को पूरा करना पुत्र का कर्तव्य है। ऐसा अद्भुत चरित्र है हमारे राम का।

चित्रकूट के जंगलों में डरे-सहमे हुए लोग जो अत्याचारी राक्षसों से अपनी जान बचाने के लिए असंगठित जीवन जीने के लिए बाध्य थे। ऐसे जन सामान्य को उनकी शक्ति का अहसास करा कर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने योग्य बना देने का कौशल श्रीराम में ही हो सकता है। निषादराज को गले लगाकर और माता शबरी के जूठे बेर खाकर राम यह संदेश देते हैं कि ऊंच-नीच और जातिभेद ऊपर उठकर व्यक्ति को ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जहां सभी प्रेमपूर्वक मिल-जुल कर रहें। व्यक्ति की क्षमता के अनुसार उसका कहां और कैसे प्रयोग करना चाहिए, श्रीराम का जीवनवृत्त यह भी सिखाता है। इसलिए उन्होंने हनुमान और सुग्रीव के बल व पराक्रम का उपयोग युद्ध तथा दूसरे अवसरों पर किया, जबकि वास्तुकार नल-नील को पुल निर्माण का कार्यभार सौंपा। माता-पिता के बाद पत्नी के वियोग के बावजूद उनका संयम और नियम नहीं टूटा। वह लगातार बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे और चुनौतियों से निपटने के लिए योजना तथा शक्ति बढ़ाते रहे। सब में सकारात्मक शक्ति का संचार करते रहे।

इस तरह, राम का व्यक्तित्व यह सीख देता है कि बिना कोई भेदभाव किए सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। पशु-पक्षियों और वन्यजीवों की रक्षा करनी चाहिए। प्रकृति की विविधता की रक्षा करते हुए सभी वंचितों-शोषितों को न्याय दिलाने के मार्ग में बड़ी से बड़ी बाधा का सामना करना पड़े तो जरा भी नहीं हिचकना चाहिए। रावण जैसे अति बलशाली, अत्याचारी राक्षस का मुकाबला किया और सत्य, न्याय को स्थापित किया। ऐसे थे हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
जब हम कर्मों के आधार पर महात्मा गांधी, बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, नेल्सन मंडेला आदि को महापुरुष का दर्जा देते हैं और जगह-जगह उनकी मूर्ति लगाते हैं, उनके नाम पर पार्क बनाते हैं तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर मंदिर निर्माण और उनकी प्रतिमा स्थापना पर विरोध क्यों ? श्रीराम का मंदिर अयोध्या में ही नहीं, हर गांव, हर शहर में होना चाहिए। जाति-धर्म से निरपेक्ष रहकर देश विकास के पथ पर आगे बढ़े यही राम ने सिखाया था। भारत का हर युवा उनके पद चिह्नों पर चले तथा जात-पात, भेदभाव का बंधन तोड़कर ज्ञान और कर्म के आधार पर एक ऐसे समाज का निर्माण करे, जिसमें सब समान हों। शिक्षा, उत्पाद और सुरक्षा का सूत्र वाक्य, समाज के हर हिस्से का सही इस्तेमाल ही तो असल में राम राज है। श्रीराम ने बलशाली हनुमान, सुग्रीव को साथ लिया तो नील की इंजीनियरिंग क्षमता को भी सही तरीके से आंका, वनवासियों की अनगढ़ क्षमता को सेना में बदल डाला। क्या यह बेहतर राज्य का आधार सूत्र नहीं है ?
सौजन्य से पाञ्चजन्य
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हमारे संस्कारों,जीवन मूल्यों, हमारी संस्कृति को पहचानने के लिए रामायण को जरूर पढ़ें।
भगवान श्री राम का मंदिर अयोध्या में ही नहीं देश के हर गाँव, हर शहर में हो जिससे हर युवा उनके चारित्रिक गुणों से प्रेरित होकर सद्पथगामी हो और राष्ट्र उन्नतिशील हो।
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महामारी से मुश्किलों का हल भी निकलेगा ।
समस्त युवा भाइयों/बहनों को मेरा सादर नमस्कार
साथियों हम आप सभी भली भाँति वर्तमान वैश्विक संकट से परिचित है, यह समस्या न केवल भारत में बल्कि दुनिया के शताधिक देशों में व्याप्त है, इस महामारी से सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात पहुँचा है, हमारा देश भारत भी इतनी बड़ी जनसंख्या के साथ पूरी ताकत और हिम्मत से, हम सभी के आपसी सहयोग से, इस परेशानी से लड़ रहा है। संकट की इस घड़ी में अनेक छोटे-बडे़ उद्योग-धन्धे प्रभावित हुए है, हमारे बहुत से प्रवासी श्रमिक भाइयों को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा, यद्यपि देश और प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व ने शीघ्र अति शीघ्र उन सभी समस्याओं के निदान हेतु उचित कदम उठाये, आज भी इस बात का पूरा ध्यान दिया जा रहा है कि इस विषम परिस्थिति में कोई भी व्यक्ति भूखा ने सोय। हमारी सरकारें हर सम्भव हमारा सहयोग कर रही है, ऐसे में मेरा निवेदन देश के भविष्य भावी कर्णधार युवा साथियों से है, चाहे वे छात्र हो, कर्मचारी हो, श्रमिक हों या अन्य किसी भी छोटे बडे़ कार्य व्यापार में लगें हो, हमारे आपके सहयोग सजगता, कर्मठता, से ही इस विषम परिस्थिति से हम सामान्य स्थिति में पहॅच पायेगें। हम जिस भी क्षेत्र में, जिस स्तर पर है, मानवता को ध्यान में रखकर एक-दूसरे का ख्याल रखते हुए देश को सर्वोपरि मानते हुए कार्य करें। इतने दिनों के लिए हम घरों में रहे है, भविष्य में भी हम बहुत आवश्यक होने पर ही बाहर जायँ वो भी पूरी सावधानी से। इस बात का पूरा ख्याल रहे कि कही हम लॉकडाउन में अकर्मण्य, आलसी न हो जायँ । स्वयं की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाये रखने के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक और घरेलू ओषधियों का सेवन करें, दिनचर्या सुधारे, योग करें। दूसरों को भी प्रेरित करें। किसी ने सत्य ही कहा है कि-हम बढे़ तो सब बढेंगे अपनेआप साथियों।
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मनुष्य का परम कर्तव्य है अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर तथा फल की चिन्ता किये बिना लक्ष्य प्राप्ति हेतु पूर्ण मनोयोग से कर्म करें।
प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है कि वह अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर तथा फल की चिन्ता किये बिना लक्ष्य प्राप्ति हेतु पूर्ण मनोयोग से कर्म करें। फल की चिन्ता इस लिए नहीं करना चाहिए क्योंकि परिणाम के विषय में अधिक सोच-विचार करने से कभी – कभी हमारे मन में नकारात्मक भावों की प्रबलता हो जाती है जिससे हमारे कदम कर्म मार्ग में विचलित होने लगते है। इस प्रकार किया गया कर्म निश्चित ही हमें हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने प्रभावी कारक बनता है किन्तु कभी कदाचित परिणाम अनुकूल नहीं भी आता है।
इसका अर्थ है कि हमारे प्रयास में कहीं कोई कमी अवश्य रह गयी। तब हमारे लिए आवश्यक है कि हम निराशा को स्वंय पर हावी न होने दें, हीन भावना से ग्रसित न होते हुए उस कमी को दूर कर अधिक ऊर्जा के साथ लगें तो अवश्य ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगें।अभी हाल ही में बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित हुए है, सफलता प्राप्त करने वाले समस्त मेधावी छात्र/छात्राओं के गुरूजन तथा आपके माता-पिता सहित समस्त परिवारजन को हार्दिक बधाई तथा आपके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं। प्यारे बच्चों ! आपकी सफलता से आपके गुरूजन तथा विद्यालय का मान बढता है, और शैक्षिक उत्कृष्टता बनाये रखने की प्ररेणा भी मिलती है। साथ-ही आपके अभिभावकों की उन अपेक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं को भी गाति मिलती है जिन्हे साकार करने का स्वप्न वे दिन-रात देखते रहते है, किसी कारणवश जो छात्र असफल हुए है उन्हें भी निराश होने की आश्यकता नहीं है। इस असफलता को कमजोरी न बनाकर, प्ररेणा ग्रहण करते हुए सफलता की सीढी बना लें जिससे परिणाम निश्चित रूप से आपके अनुकूल होगा।हमारा जीवन अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर ही समाज व देश के लिए प्ररेणादायी बना है। अनेक प्रश्न ऐसे होते है जिनका उत्तर हमें स्वंय या कभी-कभी किसी उचित मार्ग दर्शन से ढूॅढना होता है। ऐसा ही एक प्रश्न सफलता प्राप्त कर चुके छात्रों के सामने भी बडा है कि भविष्य में हम क्या करेगें ? क्या बनेंगे ? जीव- मापन हेतु हमें किस रास्ते पर चलना होगा ? आदि । इसी के साथ माता-पिता के द्वारा देखे गये सपने को पूरा करने के लिए छोटी सी उम्र में अत्यधिक दबाव का अुभव कर रहे होंगे किन्तु इस दबाव को कम करने का एक मात्र उपाय यह है कि आदरणीय अभिभावक जन कृपया अपनी अति महत्वकांक्षी को बच्चों पर बोझ न बनने दें।
उनकी क्षमता स्वंय पहचाने तथा उन्हें भी अपनी क्षमता और पर्याप्त अवसरों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करे। उन्हें न केवल स्वंय अपना पेट पालने, अपने परिवार का पोषण करने की सीख दी जाय बल्कि उनें संसार के समक्ष एक प्ररेणा बनने तथा समाज और राष्ट्र-कल्याण की भावना उत्पन्न की जाय। हम सभी जानते है कि सृष्टि के समस्त चराचर प्राणियों में मनुष्य का स्थान सर्वोपरि है। कहा भी गया है “बडे भाग मानुस तन पावा सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थ नि गावा’’ हम सभी के आस-पास ऐसे अनेक उदाहरण है मौजूद है जिन्होने न केवल अपने लिए बल्कि समाज और देश के लिए बहुत कुछ किया है। मार्ग दुर्गम अवश्य है किन्तु बाधाओं को पार लेने पर मंजिल अवश्य मिलती है। इस कठिनाई से हमें पीछे नहीं मुड़ना है। भारतीय इतिहास में सरदार बल्लभ भाई पटेल, पूर्व राष्ट्रपति और भारत के मिसाइल मैन डा0 ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, वर्तमान प्रधामंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी आदि का जीवन फूलों का सेज नहीं रहा है किन्तु इन्होने न केवल स्वप्न देखा बल्कि उसे साकार करने के लिए दृढ संकल्पित भी रहे। इस अतिरिक्त अनेक ऐसे भूत और वर्तमान व्यक्तित्व हमारे मध्य है जो सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने वाले है इनमें धीरू भाई अम्बानी, सुन्दर पिचाई, बिलगेट्स, सत्यनाडेला आदि के नाम उल्लेखनीय है। से सभी अपने कार्य क्षेत्र में उत्कृष्टतम शिखर पर स्थापित व्यक्तित्व है। इनसे प्ररेणा ग्रहण करने की आवश्यकता है। हमारे आदर्श ऐसे व्यक्ति होने चाहिए।
यह सत्य है कि जब व्यक्ति स्ंवय का आकलन स्वंय से करके अन्तर्मन की आवाज सुनकर लक्ष्य का निर्धारण करता है तो कार्य की सिद्वि निश्चित रूप से होती है और परिणाम भी व्यक्ति के कदम चुमती है जिसका प्रयास अपेक्षित दिश में मन-वाणाी और कर्म की एकनिष्ठता के आधार पर होता है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि आप सब भी अवश्य अपने उद्द्वेश्य में सफल होकर परिवार, समाज तथा देश को गौरवान्वित करेंगें। जीवन संघर्ष में सुखद और प्रभावी सफलता हेतु आप सभी को अनन्त शुभकामनाए तथा उज्ज्वल भविष्य-हेतु ईश्वर से प्रार्थना । -
कार्यकर्ता मात्र रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए नहीं होता बल्कि राष्ट्र हित की बात आते ही मां भारती की सेवा में जुट जाने के लिए होता है ।
कोरोना काल में उत्तर प्रदेश के हरेक हिस्से में भाजपा कार्यकर्ताओं ने असहाय एवं श्रमिक वर्ग की हर सम्भव मदद की
वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व एक अप्रत्याशित संकट से जूझ रहा है। विश्व के अनेक साधन सम्पन्न देश हताशा-निराशा में हैं। उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। लेकिन ऐसे में भारत जैसा विशाल जनसंख्या तथा अल्प संसाधन वाला देश कुशल नेतृत्व क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर इस संकट की घड़ी में बड़ी मजबूती के साथ लड़ाई लड़ रहा है। किसी भी कार्य को करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। वह शक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकती है, किन्तु एक तीसरी शक्ति होती है दृढ इच्छाशक्ति। यह शक्ति इन दोनों ही शक्तियों के ऊपर है। यह शक्ति न केवल मनुष्य को बहुत मजबूत बनाती है बल्कि कठिन से कठिन काम करने के लिए तैयार करते हुए सफलता तक ले जाती है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा के ओजस्वी नेतृत्व में पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं ने महामारी के दौरान विषम से विषम परिस्थिति में लगकर देशभर में राहत कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लिया आज इसी शक्ति की बहुत ही जरूरत है। क्योंकि वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व एक अप्रत्याशित संकट से जूझ रहा है। कोरोना के चलते मानवता पर संकट के बादल छाए हुए हैं। विश्व के अनेक साधन सम्पन्न और हर मामले में मजबूत देश भी हताशा-निराशा में हैं। उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। लेकिन ऐसे में भारत जैसा विशाल जनसंख्या तथा अपेक्षाकृत अल्प संसाधन वाला देश कुशल नेतृत्व क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर इस संकट की घड़ी में बड़ी मजबूती के साथ लड़ाई लड़ रहा है। देश के किसी भी नागरिक पर किसी भी तरह का कोई संकट न आने पाए, उसके लिए केंद्र सरकार की ओर से हर संभव कोशिश की जा रही है।

कोरोना के दौरान उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री स्वतंत्र देव सिंह के कुशल नेतृत्व में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गाँव से लेकर शहर तक हरेक जरूरतमंद की सेवा करने का काम किया दूसरी ओर इस दौरान जो अनूठी बात रही वह यह कि भारतीय जनता पार्टी के कुशल एवं साहसी कार्यकर्ताओं ने दिन-रात मेहनत करके वैश्विक परिदृश्य में राजनीति की परिभाषा बदलते हुए यह स्पष्ट किया कि कार्यकर्ता मात्र रैलियों में भीड़ जुटाने, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाने अथवा पार्टी के निजी हितों की रक्षा के लिए नहीं होते है, बल्कि राष्ट्र हित की बात आते ही अपने प्राणों की परवाह किए बिना मां भारती की सेवा में जुट जाने के लिए होते हैं। कोरोनाकाल में यह बात सच साबित भी हुई है। इन देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं ने असहाय-निर्धन, निराश्रित लोगों की हर संभव मदद करते हुए उनके भोजन से लेकर उनकी सुरक्षा तक सब अपने कंधे पर लेकर मानवीय संवदेना को उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित किया। कई उदाहरण तो ऐसे आए जहां कार्यकर्ता सक्षम नहीं थे, लेकिन उन्होंने खुद की चिंता किए बिना अपने पास जो भी बन सका, वह सब उन भूखे-प्यासों को उपलब्ध कराया, जिनको उस समय बड़ी जरूरत थी। उनके इस समपर्ण भाव को देखकर परिवारीजन से लेकर अन्य संबंधियों ने भी उनका भरपूर सहयोग किया। निश्चित ही आज ऐसे सभी कार्यकर्ताओं का सेवाभाव समाज के लिए एक उदाहरण रूप में है।

यूपी भाजपा के संगठन महामंत्री श्री सुनील बंसल ने कोविड-19 के दौरान विभिन्न स्तरों पर महत्वपूर्ण कार्य करके पार्टी के कार्यकर्ताओं को उचित दिशा निर्देश प्रदान किया, जिससे उनको जमीनी स्तर पर कार्य करने में मदद मिली यकीनन यह सत्य है कि जब कोई मुखिया चाहे वह किसी परिवार का हो या पार्टी का, वह जब समाज व राष्ट्र हित को प्रमुखता प्रदान करता है तो निश्चित ही परिवार के अन्य सदस्य अथवा पार्टी के कार्यकर्ता उत्साहित होकर अपने नेतृत्व की हर बात को सिर—माथे लेते हुए अपना सर्वस्व अर्पण करने में रंच मात्र भी नहीं सोचते। यही कारण है कि कार्यकर्ता आधारित भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा के ओजस्वी नेतृत्व में सम्पूर्ण देश के देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने एक मिसाल कायम करते हुए गांव—शहर, गली, मोहल्ले या अन्यत्र कहीं भी इस संकट के दौर में फंसे लोगों की हर संभव मदद की। इस कड़ी में केवल उत्तर प्रदेश में ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री स्वतंत्र देव सिंह एवं संगठन महामंत्री श्री सुनील बंसल की कुशल रणनीति से कार्यकर्ताओं ने 4 करोड़, 32 लाख भोजन के पैकेट जहां वितरित किये गए वहीं 92 लाख 44 हज़ार मास्क भी देने का काम किया गया। श्रमिक प्रवासियों के लिए 185 स्थानों पर राहत सेवा केन्द्र संचालित करने की बात हो या फिर, 10 लाख 33 हज़ार श्रमिकों के भोजन की व्यवस्था या 47 हज़ार लोगों को पदवेश आदि उपलब्ध करवाकर उनकी मदद करने का काम कार्यकर्ताओं ने किया।

देश के विभिन्न हिस्सों में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने रात-दिन एक करके हर जरूरतमंद तक राहत पहुंचाने का काम किया पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय का विचार समाज के अंतिम व्यक्ति तक सभी लाभ पहुंचाने की बात करता है। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर छोटे से छोटा कार्यकर्ता दीनदयाल जी के उसी सपने को साकार करने का हर सम्भव प्रयास कर रहा है। कोराना काल में उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा विषम परिस्थिति में किए गए कार्य के दर्शन हुए। वह अपने प्राणों की परवाह किए बिना हर जगह तत्परता से लोगों तक मदद पहुंचाने में लगे थे। चाहे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के वनवासी इलाके में वनवासी समाज की सेवा की बात हो या पश्चिम बंगाल में गरीब-असहाय जनों की मदद या फिर ओडिसा, छत्तीसगढ़ या देश के अन्य प्रदेश में असहाय व निराश्रितों की सेवा। सभी जगह इन कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्ति के अनुरूप समाज को मदद देने का काम किया।
सौजन्य से पाञ्चजन्य

